Monday 11 February 2013

February 11,2013.Day 89. Srimad Valmiki Ramayan - The First Epic Poem Of India. (Continued)



Book I : Bala Kanda - Book Of Youthful Majesties : Chapter 1(Continued)


gAyatri rAmAyaNa

In the first chapter of Bala Kanda the gist of Ramayana is imbibed and it called samkshepa raaamayana, or also called bala raamaayana . The youngsters are asked to recite these stanzas daily for longevity and a perfect personality like that of Rama. The summarised stanzas reflected here are from the main epic. The canto-wise summarisation is as below:
1. Bala Kanda [Book I] verses I-1-8 to 18
2. Ayodhya Kanda [Book II ] verses I-1-18 to 28
3. Aranya Kanda [Book III] verses I-1-29 to 57
4. Kishkindha Kanda [Book IV] I-1-58 to 71
5. Sundar Kanda [Book V] I-1-72 to 78
6. Yuddha Kanda [Book VI] I-1-79 to 90
7. Uttara Ramayana [Book VII] I-1-91 to 97
8. Phala Shruti [Results of Recitation] I-1-98 to 100
Valmiki composed Ramayana according to the letters of Gayatri Hymn and they are identified with the following verses in all cantos:
श्लोकेन प्रति साहस्रं प्रथमे क्रमात् |
गायत्रि अक्षरम् एकैकम् स्थापयामास वै मुनिः ||

१. त -
तपः स्वाध्याय निरताम् तपस्वी वाग्विदाम् वरम् |
नारदम् परि पप्रच्छ वाल्मीकिर् मुनि पुंगवम् || १-१-१
२. स -
स हत्वा राक्षसान् सर्वान् यज्ञ घ्नान् रघुनंदनः |
ऋषिभिः पूजितः तत्र यथा इन्द्रो विजये पुरा || १-३०-२४
३. वि -
विश्वामित्रः स रामास्तु श्रुत्वा जनक भाषितम् |
वत्स राम धनुः पश्य इति राघवम् अब्रवीत् || १-६७-१२ - बालकाण्डम्
४. तु -
तुष्टाव अस्य तदा वंशम् प्रविश्य स विशाम् पतेः |
शयनीयम् नरेन्द्रस्य तत् आसाद्य व्यतिष्टत || २-१५-१९
५. व -
वनवासम् हि संख्याय वासांसि आभरणानि च |
भर्तारम् अनुगच्छंत्यै सीतायै श्वशुरो ददौ || २-४०-१४
६. रा -
राजा सत्यम् च धर्मः च राजा कुलवताम् कुलम् |
राजा माता पित चैव राजा हितकरो नृणाम् || २-६७-३४
७. नि -
निरीक्ष्य स मुहूर्तम् तु ददर्श भरतो गुरुम् |
उटजे रामम् आसीनम् जटा मण्दल धारिणम् || २-९९-२५ - अयोध्याकाण्डम्
८. य -
यदि बुद्धिः कृता द्रष्टुम् अगस्त्यम् तम् महामुनिम् |
अद्य एव गमने रोचयस्व महायशः || ३-११-४४
९. भ -
भरतस्य आर्य पुत्रस्य श्वश्रूणाम् मम च प्रभो |
मृग रुपम् इदम् व्यक्तम् विस्मयम् जनयिष्यति || ३-४३-१८
१०. ग -
गच्छ शीघ्रम् इतो राम सुग्रीवम् तम् महाबलम् |
वयस्यम् तम् कुरु क्षिप्रम् इतो गत्वा अद्य राघव || ३-७२-१७ - अरण्यकाण्डम्
११. दे -
देश कालौ प्रतीक्षस्व क्षममाणः प्रिय अप्रिये |
सुख दुःख सहः कले सुग्रीव वशगो भव || ४-२२-२०
१२. व -
वंद्याः ते तु तपः सिद्ध सप्तसा वीत कल्मषाः |
प्रष्टव्याः ते अपि सीतायाः प्रवृत्तिम् विनय अन्वितैः || ४-४३-३३ - किष्किन्धाकाण्डम्
१३. स -
स निर्जित्य पुरिम् श्रेष्टाम् लंकाम् ताम् काम रूपिणीम् |
विक्रमेण महतेजा हनुमान् मारुत आत्मज || ५-४-१
१४. ध -
धन्या देवाः स गन्धर्वा सिद्धाः च परम ऋषयः |
मम पश्यन्ति ये नाथम् रामम् राजीव लोचनम् || ५-२६-४१
१५. म -
मंगलाभिमुखी तस्य सा तदा आसित् महाकपेः |
उपतस्थे विशालाक्षी प्रयता हव्यवाहनम् || ५-५३-२८ - सुन्दरकाण्डम्
१६. हि -
हितम् महार्थम् मृदु हेतु संहितम्
व्यतीत कालायति संप्रति क्षमम् |
निशंय तद् वाक्यम् उपस्थित ज्वरः
प्रसंगवान् उत्तरम् एतत् अब्रवीत् || ६-१०-२७
१७. ध -
धर्मात्मा रक्षसाम् श्रेष्टः संप्राप्तो अयम् विभीषणः |
लंकैश्वर्यम् ध्रुवम् श्रीमान् अयम् प्राप्नोति अकण्टकम् || ६-४१-६७
१८. यो -
यो वज्र पाता अशनि सन्निपातान्
न चुक्षुभे वा अपि चचाल राजा |
स राम बाणा अभिहतो भृश आर्तः
चचाल चापम् च मुमोच वीरः || ६-५९-१४१
१९. य -
यस्य विक्रमम् आसाद्य राक्षस निधनम् गताः |
तम् मन्ये राघवम् वीरम् नारायणम् अनामयम् || ६-७२-११
२०. न -
न ते ददृशिरे रामम् दहंतम् अरि वाहिनीम् |
मोहिताः परम अस्त्रेण गान्धर्वेण महात्मना || ६-९३-२६
२१. प्र -
प्रणंय देवताभ्यः च ब्राह्मणेभ्यः च मैथिली |
बद्ध अंजली पुटा च इदम् उवाच अग्नि समीपतः || ६-११६-२४ - युद्धकाण्डम्
२२. च -
चलनात् पर्वत इन्द्रस्य गणा देवाः च कंपिताः |
चचाल पार्वती च अपि तदा आश्लिष्टा महेश्वरम् || ७-१६-२६
२३. द -
दाराः पुत्रा पुरम् राष्ट्रम् भोग आच्छादन भाजनम् |
सर्वम् एव अविभक्तम् नो भविष्यति हरि ईश्वरः || ७-३४-४१
२४. य -
याम् एव रात्रिम् शत्रुघ्नः पर्ण शालाम् समाविशत् |
ताम् एव रात्रिम् सीता अपि प्रसूता दाकर द्वयम् || ७-६६-१ - उत्तरकाण्डम्
इदम् रामायणम् कृत्स्नम् गायत्री बीज संयुतम् |
त्रि संध्यम् यः पठेत् नित्यम् सर्व पापैः प्रमुच्यते ||

यावत् आवर्तते चक्रम् यावति च वसुंधरा |
तावत् वर्ष सहस्राणि स्वामित्वम् अवधारय ||
मंगलम् कोसलेन्द्राय महनीय गुणात्मने |
चक्रवर्ति तनूजाय सार्वभौमाय मंगलम् ||

इति गायत्री रामायणम् संपूर्णम्
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इति वाल्मीकि रामायणे आदि काव्ये बाल काण्डे प्रथमः सर्गः ||

Thus, this ends the 1st chapter in Bala Kanda of Valmiki Ramayana, the First Epic poem of India.


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